इन्डियन
मीडिया: अमेरिका पर मुखर,भारत पर मौन
रमेश यादव
E-mail: dryindia@gmail.com
8 नवंबर,2012/.नई दिल्ली.
भारतीय सन्दर्भ में
देखा जाये तो प्रिंट मीडिया एक-एक शब्द-सेंटीमीटर और इलेक्ट्रानिक मीडिया एक-एक
सेकेण्ड और मिनट का हिसाब लगाता-बेचता है.बावजूद इसके इन्डियन मीडिया ने अमेरिकी
मामले में दिल खोलकर लाइव कवरेज दिया और पृष्ठ दर पृष्ठ प्रकाशित किया.
भारतीय मामलों पर
आमतौर पर मौन व्रत रहने वाला इन्डियन मीडिया,विदेशी खासकर,अमेरिकी मामलों पर कितना
मुखर हो उठता है.अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनावी और जीत के बाद के कवरेज को देखकर
अनुमान लगाइए.
इस हफ्ते हमारे
मुल्क में कई बड़ी घटनाएँ हुईं.इरोम शर्मीला के संघर्ष के 12 साल पूरे हुए.किसानों
के पक्ष में लड़ते हुए मेधा पाटकर,साथियों सहित जेल गईं..
नियंत्रक और महालेखा
परीक्षक (कैग) विनोद राय सीबीआई और सीवीसी को संवैधानिक दर्जा दने की वकालत किये.आज
के अखबारों में यह खबर सूचनात्मक है.
मारुती सुजुकी,मानेसर
प्लांट ने 546 कर्मचारियों को पहले ही बर्खास्त कर चुका है.करीब 145 जेल में बंद
हैं. बुधवार को गुड़गांव स्थित लघु-सचिवालय में धरना-प्रदर्शन के लिए पहुंचे
कर्मचारियों में से ३२ लोगों को फिर गिरफ्तार किया गया.यह आंदोलन तक़रीबन 18 जुलाई
से चला आ रहा है.
आब आप देखिये की जनहित से जुड़े इतने गंभीर किस्म के मामले खुद भारत में मौजूद हैं.लेकिन इस विषय पर इन्डियन मीडिया मौन व्रत रखा हुआ है.क्यों ...? क्योंकि यह समस्या भारतीय लोगों की है.इन्डियन की नहीं.
आब आप देखिये की जनहित से जुड़े इतने गंभीर किस्म के मामले खुद भारत में मौजूद हैं.लेकिन इस विषय पर इन्डियन मीडिया मौन व्रत रखा हुआ है.क्यों ...? क्योंकि यह समस्या भारतीय लोगों की है.इन्डियन की नहीं.
यहाँ भारतीय वे हैं
जो पूरी आबादी का 75-80 फीसदी हैं और जो गाँवों में रहते हैं.बचे 20 फीसदी इन्डियन,जिनका
80 फीसदी भू-भाग के प्राकृतिक स्रोतों /संसाधनों पर एकाधिकार है.या यूँ कहिये की
कब्जा है.
ऐसा नहीं है कि इन्डियन
मीडिया,भारतीय समास्याओं को नहीं दिखाता,दिखता है,लेकिन उन्हीं खबरों को जिसके
पीछे कुछ समूह लगे होते हैं.जिसमें कार्पोरेट समूह का फायदा होता और सत्ता से दूर,सत्ता
के लिए ताक लगाये राजनैतिक दलों को लाभ पहुंचाने
वाला होता है.
आखिर क्या कारण है कुछ
लोगों कि जन्म पत्री देखने वाला इन्डियन मीडिया,रिलायंस के मामले में फालो-अप नहीं
किया,क्यों ...? क्योंकि सोचिये क्यों ...?
इस देश में कौन
कितना बड़ा भ्रष्ट है.किसका धन,कहाँ जमा है.कौन कितना चोरी करता है.यह बात सब जानते
हैं.मीडिया संस्थान भी.लेकिन जब अरविन्द केजरीवाल खुलासा करते हैं,तब यह खबर का
हिस्सा बना.फिर वहीँ मौन सन्नाटा.यह तो दूसरे के कंधे पर बंदूक चलाने वाली बात हुई.
महीनों से इन्डियन मीडिया,भारतीयों
में अमेरिकी सपने को में बेच रहा है.जाहिर है अमेरिका का सपना क्या है ...? अफ़गानिस्तान/इरान/ईराक/
दुनिया के मुसलमान.. या कोई और...
ओबामा के जीत से व्यक्तिगत
तौर पर हम खुश हैं.इसका कारण हैं.क्योंकि वहां की जनता,उस समुदाय के बीच के व्यक्ति
को दोबारा राष्ट्रपति चुना जो अश्वेत है.जिसे 1960 के मध्य तक मताधिकार नहीं था.
हम इसे सामाजिक
परिवर्तन के तौर पर देख रहे हैं.यह भारत में भी होना चाहिए.बावजूद इसके हम अमेरिकी
साम्राज्यवादी नीति के खिलाफ हैं..
इन्डियन मीडिया में ओबामा को जो कवरेज मिला,उससे किसको लाभ होगा.जाहिर है,कार्पोरेट घरानों को...क्यों ? क्योंकि मीडिया संस्थानों को संचालित करने वाले अधिकतर कार्पोरेट घराने हैं.
इन्डियन मीडिया में ओबामा को जो कवरेज मिला,उससे किसको लाभ होगा.जाहिर है,कार्पोरेट घरानों को...क्यों ? क्योंकि मीडिया संस्थानों को संचालित करने वाले अधिकतर कार्पोरेट घराने हैं.
इन्डियन मीडिया
भारतीय समाज को यह समझाने में लगा हुआ है,कि विदेश कंपनियां आएँगी तो पल भर में
भारत के नंगे-भूखों की दरिद्रता खत्म हो जायेगी.
एफडीआई गुब्बारा है.इससे
अधिक और कुछ नहीं.
1 comment:
कल 11/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
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