Saturday 9 June 2012

हम लड़ते रहे,वो तमाशा देखते रहे


हम लड़ते रहे
संघर्ष करते रहे
न खाने को दाना
न पीने को पानी
भूखे पेट सोते रहे
तड़पते रहे  
जब भी आया चुनावी बेला
हम उठा के रगं-बिरंगे झंडा
छाती पीट-पीट कर नारे लगते रहे
अपनी मुक्ति के लिए
चिल्लाते रहे
हम लाठी-गोली खाते रहे
तड़पते रहे,दम तोड़ते रहे
वो दूर से तमाशा देखते रहे
हमारी लाशों की आंच में रोटियां सकते रहे
जब भी मिला मौका
उन्हें
सत्ता के सुख में लपेटकर
वे
रत्न जड़ित सिंहासन पर बैठ
हमारा ही हिस्सा खाते रहे
हम ताकते रहे
वे शान से जिंदगी बिताते रहे
 हम
रोते रहे,बिलखते रहे
चींखते रहे,चिल्लाते रहे
वे हंसते रहे
गुनगुनाते रहे,मौज उड़ाते रहे
चैन की बंसी बजाते रहे....

रमेश यादव /09/06/2012./2.40.pm./नई दिल्ली

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