मेरा
तो मन
कर रहा है कि
मना लूँ
मन को अपने
पर
मन
है कि मानता ही नहीं
देखिये
मेरे मर्जी के खिलाफ
जाकर उनसे
मन लगा बैठा
अब
तो मेरा
मन कर रहा है
कि मन की
मनमर्जी को
मनमानी के लिए
उसका मन
मरोड़कर कर
अपने
मन को शांति दूँ ...
नोट: यह कविता उन मनों को समर्पित है जो मेरे मन से मन लगाने के लिए मनमानी पर उतरे हुए हैं.
रमेश यादव/ 03/06/2012/4.10.PM/नई दिल्ली.
3 comments:
अब
तो मेरा
मन कर रहा है
कि मन की
मनमर्जी को
मनमानी के लिए
उसका मन
मरोड़कर कर
अपने
मन को शांति दूँ ...
बहुत खूब सर!
बेहतरीन पंक्तियाँ।
सादर
मन पर कहा हमारा बस चलता है..
मन तो अपनी ही करता है..
बहुत ही बेहतरीन रचना..
मन के कोरों में पलते-खिलते विचार शब्दों के धागों में मिलके हृदय के अदभूत भाव का रूप ग्रहण कर लेते हैं...
अति सुन्दर अभिव्यक्ति...
सादर...!
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