Sunday 3 June 2012

मेरे मन की मनमानी


मेरा
तो मन
कर रहा है कि
मना लूँ
मन को अपने
पर
मन
है कि मानता ही नहीं
देखिये
मेरे मर्जी के खिलाफ
जाकर उनसे
मन लगा बैठा
अब
तो मेरा
मन कर रहा है
कि मन की
मनमर्जी को
मनमानी के लिए
उसका मन
मरोड़कर कर
अपने
मन को शांति दूँ ...

नोट: यह कविता उन मनों को समर्पित है जो मेरे मन से मन लगाने के लिए मनमानी पर उतरे हुए हैं.

रमेश यादव/ 03/06/2012/4.10.PM/नई दिल्ली.  

3 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

अब
तो मेरा
मन कर रहा है
कि मन की
मनमर्जी को
मनमानी के लिए
उसका मन
मरोड़कर कर
अपने
मन को शांति दूँ ...

बहुत खूब सर!
बेहतरीन पंक्तियाँ।

सादर

मेरा मन पंछी सा said...

मन पर कहा हमारा बस चलता है..
मन तो अपनी ही करता है..
बहुत ही बेहतरीन रचना..

डॉ.सुनीता said...

मन के कोरों में पलते-खिलते विचार शब्दों के धागों में मिलके हृदय के अदभूत भाव का रूप ग्रहण कर लेते हैं...
अति सुन्दर अभिव्यक्ति...
सादर...!