Friday 11 January 2013

हाईकोर्ट के आईने में देखिये,दिल्ली पुलिस का चेहरा


हाईकोर्ट के आईने में देखिये,दिल्ली पुलिस का चेहरा  

रमेश यादव /dryindia@ gmail.com 

11 जनवरी,2013.नई दिल्ली.  

दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट को जो सीलबंद रिपोर्ट सौंपी है,उसमें उन अधिकारीयों के नाम नहीं हैं,जो १६ दिसम्बर की रात उस इलाके में गश्त पर थे और जिम्मेदार हैं.इस बात से चीफ़ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ख़ासा नाराज़ है.
सोचिये जरा !
जब दिल्ली पुलिस हाई कोर्ट को धोखा दे सकती है या धोखे में रख सकती है तो अनुमान लगाइए आम आदमी के साथ उसका कार्य-व्यवहार कैसा होगा...?
मुझे लगता है भारतीय पुलिस का यह चरित्र खुद अकेले का गढ़ा हुआ नहीं है,बल्कि राजसत्ता ने इसे अपने सुविधा के हिसाब से सदियों से गढ़ता आया है.अपनी मर्जी की व्यवस्थ के लिए.अपने सवार्थ की रक्षा के लिए और अपने खूंखार,निरंकुश और जनविरोधी सत्ता को बनाये रखने के लिए.
भारतीय पुलिस जानती है कि सरकार कोई भी हो उसे क्या करना है और सरकार उससे कौन-कौन से काम लेगी.क्यों ? और किसके हित के लिए...
उसे यह भी पता है कि सरकार कैसे चलती है और उसे चलाने के पीछे कौन सी मजबूरियां हैं और उसका समाजिक सरोकार कितना गहरा है.यहीं बात और भरोसा उसे राजसत्ता का पोषक बनाती है और समाज विरोधी.
आजादी के पहले और आज़ादी के बाद के पुलिसिया चरित्र में कोई खास बदलाव नहीं आया है.जैसे राज सता और उसके चाल,चरित्र और चेहरे में.
जब राजसत्ता समाज के प्रति
संवेदनशील
जिम्मेदार
जवाबदेह
प्रतिबद्ध
निष्पक्ष और
ईमानदार

नहीं है तो फिर अकेले पुलिस से आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं की उसका व्यवहार
जनपक्षधर और
संवेदनशील होगा.
एक बरगी राजसता का चेहरा 
निरंकुश
निर्मम 
निर्दयी और
अमानवीय
दिखता और लगता है.ठीक यहीं चरित्र और चेहरा पुलिस की भी है.
जब इतने बड़े जनाक्रोश/आन्दोलन और मीडिया की सक्रियता के बावजूद दिल्ली पुलिस हाई कोर्ट तक को धोखे में रख रही है तो समझिये यह उसके अकेले का फैसला नहीं हो सकता है.इसमें पूरी तरह से सरकार का संरक्षण प्राप्त है.
यदि ऐसा नहीं होता तो चीफ़ जस्टिस क्यों सवाल उठाते कि उक्त घटना के लिए "केवल एसीपी क्यों ? डीसीपी क्यों नहीं,कमिश्नर पर कार्रवाई क्यों नहीं...? "
गौरतलब है कि बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट उक्त मामले पर केवल जूनियर पुलिस अफसर को निलंबित करने और पुलिस आयुक्त सहित वरिष्ठ अफसरों को जवाबदेह नहीं बनाने पर एतराज जताया है.

सुझाव
१. पहले तो राजसत्ता खुद अपना चाल,चेहरा और चरित्र मानवीय और सामाजिक बनाये.
२. सही मायने में लोकतान्त्रिक ढांचे को मजबूत और विकसित करे.
३. निजी हित के लिए राजसत्ता का दुरूपयोग बंद करे
४. समाज के प्रति जिम्मेदार,जवाबदेह,प्रतिबद्ध,निष्पक्ष और ईमानदार बनाये.
५. आम आदमी के सरोकार को अपने मिशन का लक्ष्य समझें .
फिर इन्हीं मूल्यों को केन्द्रित करके
पुलिस को प्रशिक्षण दे तभी पुलिस का चाल,चेहरा और चरित्र सामजिक और मानवीय होगा.
वरना जब तक राज सत्ता का चाल,चेहरा और चरित्र नहीं बदलेगा,
तब तक आप पुलिस थाना खोलने,पुलिस की भर्ती करने,अत्याधुनिक तकनीक और हथियार देने की माँगा केरे रहिये,इससे भी कुछ बदलने वाला नहीं है.
आखिर कार इन सबका प्रयोग एक दिन आम आदमी के दमन के लिए ही किया जायेगा न की सामाजिक सरोकार के लिए....

जागते रहिये.................................................... 

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