Saturday 2 February 2013

मलाला को नोबल,कठमुल्लावाद पर तमाचा


मलाला यूसुफजई के मुद्दे पर
आज शाम 7 बजे फ़ोकस टी.वी. को दिए गए फ़ोनो का संक्षिप्त अंश यहाँ प्रस्तुत है.
पहला  

भारत और पाकिस्तान का सामाजिक ढांचा मर्दवादी नींव पर टीका है.न केवल इन दोनों मुल्कों में बल्कि,दुनिया के पैमाने पर पुरुष,महिलाओं को अपना उपनिवेश और उनके बदन को अपना साम्राज्य समझते हैं.
दूसरा

कट्टरवादी और कठमुल्लावादी शक्तियाँ महिलाओं को जाहिल,गंवार और अपना गुलाम बनाकर रखना चाहती हैं.
तीसरा

पाकिस्तान में मलाला ने कठमुल्लों के जड़तावादी सत्ता को चुनौती देकर शिक्षा के लिए परिवर्तनकारी पहल की.
चौथा   

यदि मलाला को शांति का नोबल पुरस्कार मिलेगा तो दुनिया में संघर्षशील महिलाओं में सकारात्मक संदेश पहुंचेगा.उनका आत्मबल और हौसला बढ़ेगा.वे और बहादुरी के साथ संघर्ष करेंगी.अन्याय के ख़िलाफ़ विरोध करने के लिए वे और अधिक चुनौती कबूल करेंगी और प्रेरित होगीं.
पांचवां  

पाकिस्तान की माएं मलाला जैसी बेटी ज़नने के लिए ख़्वाब देखेंगी और अपने बेटे-बेटियों को मलाला बनने के लिए प्रेरित होंगी.वहां पर नई पीढ़ी शिक्षा हासिल करने के लिए और आगे बढेंगी.
छः

मलाला को नोबल का शांति पुरस्कार एक तरह से महिलाओं की इज्ज़त,आज़ादी और बराबरी के दुश्मन कठमुल्लावादियों के ताबूत में कील का काम करेगा.


अंतिम बात जो यहाँ कह रहे हैं- हमारी तरफ से नार्वे की संसद और सत्ताधारी पार्टी को नोबल पुरस्कार देने के लिए उठाये गए अभूतपूर्व निर्णय के लिए बधाई.


और अंत में प्रस्तुत है एक कविता जो 9 अक्तूबर 2012 को मलाला के लिए लिखा था-           


Tuesday, 9 October 2012

मलाला युसुफ़जई ! 
घूटने मत टेकना उनकी बंदूकों के आगे 
डटकर करना मुकाबला  
कठमुल्लों/कट्टरपंथी तालिबानियों का
उनकी मिसाइलें भी खामोश हो जाएँगी
कम पड़ जाएँगी गोलियाँ  
तुम्हारे फौलादी इरादों के आगे
झुकना ही होगा
उन्हें एक दिन
तुम्हारे मिशन के सामने
कामयाब होगा तुम्हारा सपना    
जारी रखना अपने हौसलों की उड़ान 
तुम्हारे पाक इरादे
दर्ज़ होंगे
दुनिया के इतिहास में
जनेंगीं 'माएं'
हजारों 'मलाला'
फक्र करेंगी तुम्हारे बहादुरी पर
हार मत मानना 
तुम्हारे पीछे कतार लगाये खड़ी हैं 
उम्मीद भरी करोड़ो नज़रें   
अपनी बेहतरी सपना लिए 
तुम बनना 
उनकी मुक्ति 
का अगुआ ...


रमेश यादव /09/10/2012
नोट : पाकिस्तानी की 14 वर्षीय किशोरी मलाला युसुफजई को देश के उत्तर-पश्चिम में स्वात घाटी में तालिबानियों प्राणघातक हमला किया है.वो घायल है.
मलाला पहली बार साल वर्ष 2009 में सुर्खियों आईं जब 11 साल की उम्र में उन्होंने तालेबान के साये में ज़िंदगी के बारे में बीबीसी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरु किया. इसके लिए उन्हें वर्ष 2011 में बच्चों के लिए अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था.


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