Friday 15 February 2013

सुनो ! मेरा विद्रोह गान



............बीज..........

मैं
बीज हूँ
बंज़र जमीन का  
निकला हूँ
धरती को चीरकर
उठा हूँ
झंझावातों से जूझ कर
खड़ा हूँ तूफानों से भींड़कर
सोया हूँ काँटों के सेज पर
उबड़-खाबड़ पथ पर
चला हूँ अकेले तपकर
आधे पेट खाकर
फटा-पुराना पहिनकर
किया है हासिल लक्ष्य को
सांचे के बाहर डटकर
पौधे जैसा मेरा जीवन
बनकर बीज  
किया है
संघर्ष-सृजन …

14 /02/2013/1:58.am
   
-----------विद्रोह गान................ 
तुम हो
सत्ता-प्रतिष्ठान
कैसे करूँ तुम्हारा बखान
गाऊं कैसे
तुम्हारा महिमागान  
तुमने
हमारे अरमानों को है रौंदा
भावनाओं का किया है सौदा  
संवेदनाओं का किया है दमन
संभावनाओं को किया है दफ़न
सदियों से छला है
हमारे सरोकारों को
हमारे सृजनशीलता को किया है शहीद
तुम ही बताओ
गाऊं कैसे  
गान तुम्हारा
शोषण का गुणगान तुम्हारा
क्रूरता का विजय गान तुम्हारा
अब दिल करता है
गाऊं बगावत की गीत
मुक्ति का राष्ट्रगान
खबरदार जो बढ़े तुम्हारे कदम
हमारी तरफ
अपने कानों को कह दो हो जाएँ सावधान
सुनने के लिए मेरा विद्रोह गान
यह कदम नहीं रुकेंगे
एक इंच नहीं झुकेंगे
अब लेकर ही रहेंगे
अपना हिस्सा
खत्म होगा
तुम्हारे  सदियों का किस्सा
मांगोगे तुम जीवन का भिक्षा
  
................तपन.............

सर्दी हो या बारिश  
दमन हो या तपन
कदम तुम्हारे रुके नहीं
इरादे तुम्हारे झुके नहीं
तपती दिन-दुपहरिया में
नंगे पैर का चलना
छन-छन तलुवे का जलना
गोंद में हमारा फुदकना
खुशी से तुम्हारा चहकना
दर्द हमने देखा नहीं
जर्द तुमसा सहा नहीं
फर्ज तुमसा निभाया नहीं
हमेशा करता हूँ अर्ज
आंसुओं बाहर निकलना नहीं
कर्ज तुम्हारा मिटा नहीं
ममतामई मर्म सही
अपना यही कर्म गहि
माँ की ममता
प्यार की समता

DRY/14/02/2013/12:30 

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