Friday 15 February 2013

प्रेमियाये,प्रेमियों के नाम !


जब
मुहब्बत तिजारत बन जाये
लेकर फुल साल में एक दिन
चुपके से पार्कों-रेस्तरां में मिला जाये
कसमे-वादे,प्यार-वफ़ा
का दावा किया जाये
जब बात न बने
हो जाएँ असफल
चलते राह तेज़ाब क्यों फेका जाये
ताक-झांक तो पूरे साल करते हैं
मौका मिलते ही बलात्कार क्यों किया जाये
ग़र
प्रेम हो दिली
तो फिर दिखावा क्यों किया जाये
इसे अंतस मन में ही क्यों न रखा जाये
बाज़ार के हवाले क्यों किया जाये
प्रेम को
भोग
की वस्तु क्यों बनाया जाये
क्यों न
स्त्री को
‘यूज एंड थ्रो’ की जगह
प्रेम की पवित्रता के सूत्र में बंधा जाये….
DRY/14/02/2013/11:27/am.

No comments: