Wednesday 30 May 2012

मैं एक दरवाजा हूँ !

मैं
एक दरवाजा हूँ 
तुम्हारे सभ्यता/संस्कृति /संस्कार /परम्परा/मूल्य/आदर्श और सिद्धांत का
मैं
खुलता हूँ
तुम्हारे
घर/गाँव /जिले /प्रदेश /देश
और      
तुम्हारे जीवन में
अब मैं जर्जर हो रहा हूँ 
मुझे बचाओ 
हवा /पानी /धूप और उम्र से नहीं 
उनसे जो मुझे बंद कर रहे हैं 
और खोल रहे हैं 
उनके लिए
जो तुम्हारे
आज़ादी को सदियों बंधक बना के रखे
मेरी हिफाज़त करो
उनसे नहीं
अपनों से....

रमेश यादव
सृजन/6/05/2012/बनारस/ सतीश का कमरा