Tuesday 22 January 2013

ये शिविर लगाते हैं,वो शाखा लगाते हैं



ये शिविर लगाते हैं,वो शाखा लगाते हैं 

रमेश यादव 
  
1
हामी भरने का लाभ 
चुप रहने का मुनाफा 
सब कुछ हजम करने का प्रसाद 
सहमति का सुख 
असहमति का खतरा 
विरोध का खामियाजा 
और 
विद्रोह का अपना ही आनंद है

DRY/22/01/2013/07.38.pm
2
एक वो हैं
टीवी को
किचन के टांड़ पर रखकर खुश हैं
एक हम हैं
महीने में रिचार्ज भी कराते हैं
देखते भी हैं
और परेशां भी रहते हैं...
DRY/ 21/01/2013/ PM

3
वाह वाह क्या बात है...!

मक्खन पर मक्खन लगाये जाओ
मंच-दर-मंच पाये जाओ
ओरों को बरगलाये जाओ
खुद अकेले फल खाए जाओ
हर तरफ हो तुम्हारी ही शोहरत
खुद के लिए
पुरस्कार का सेज सजाये जाओ
औरों के लिए षड्यंत्र रचाए जाओ
गले में लटकाकर समाज सेवा का पट्टा
प्रगतिशील भी कहलाये जाओ
जाति का गिरोह भी बनाये जाओ
छींक-पाद कर अपने वाल पर
फेसबुक पर परचम फहराए जाओ ...

DRY/ 21/01/2013/07.51.PM

4
वो साहब कहे
और
सुर्ख़ियों में छा गये
हम हुजूर-हुजूर
करते रहे मगर
चर्चा नहीं हुई

DRY/ 21/01/2013/06.05pm

5
तुम्हारे 
सत्ता के आंसू से 
आज अखबारों के रंग-बिरंगे पन्ने भींगे मिले 
हम सदियों से संघर्ष करते रहे 
आंसू बहाते रहे 
आज तक कोई पोछने वाला न मिला ...

DRY/ 21/01/2013/05.43.pm
6
विचार वालों के पास बंदूक-तलवार नहीं होते
बंदूक-तलवार वालों के पास विचार नहीं होते...
खोखला दोनों होते हैं...?

DRY/18/01/2013 
7

चिंतन भी तुम्हारी 
मनन भी तुम्हारी 
चयन भी तुम्हारी 
चित भी तुम्हारी 
पट भी तुम्हारी 
चट-पट भी तुम्हारी 
ख़ट-पट भी तुम्हारी 
चल हट भी तुम्हारी 
हलचल भी तुम्हारी फिर क्या ...?
'चिता' हमारी.. 'आग' तुम्हारी
अंतिम में 
जय जयकार भी तुम्हारी 
.DRY/18/01/2013/03.30pm.
8
इतना
पसंद
ना
करें
कि
मैं
अप्रासंगिक
हो
जाऊं
.DRY/18/01/2013/10.25.am
9
तुम्हारा चिंतन
आम आदमी के लिए
'चिता'
साबित हो रहा है
लकड़ी की जगह
डीजल,पेट्रोल और मिट्टी के तेल से जल रहा है ...

DRY/18/01/2013/10.13.1am.
10
तीन बजे रात में ओले का गिरना
बिजली का तड़क ना
और बारिश का होना
बालकनी में आशियाना बनाये
हमारी कबूतरों का फड़फड़ाना
उनकी फिक्र में
सोना और जागना
सुबह आठ बजे अँधेरे का छाना
दिन में रात का होना
फिर बारिश का आना
और
सर्दी से मिल जाना
बार -बार बिजली का कटना
और नेट का आना -जाना
सब कुछ का साजिश में तब्दील हो जाना

DRY/18/01/2013/9.16 am.
11
क्या फर्क है
उनमें और
तुममें
वे शाखा लगाते हैं
तुम शिविर लगाते हो....

DRY/17/01/2013/12.05.pm

4 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...


आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 24-01-2013 को यहाँ भी है

....
बंद करके मैंने जुगनुओं को .... वो सीख चुकी है जीना ..... आज की हलचल में..... संगीता स्वरूप

.. ....संगीता स्वरूप

. .

Anita Lalit (अनिता ललित ) said...

बड़े तीखे... मगर सही बान ....
बस एक बात-विचार वालों को शायद बंदूक तलवार की ज़रूरत नहीं पड़ती और... बंदूक तलवार वालों के पास दिल-दिमाग़ तो होता ही होगा मगर अक्सर उसका इस्तेमाल 'ना' करने की मजबूरी सामने होती होगी... शायद....
~सादर!!!

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर ....सटीक

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

तीक्ष्ण कटाक्ष ....